उत्तराखंड में जागर सम्राट के नाम से मशहूर प्रीतम भरतवाण आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं वे उत्तराखंड की इस विशेष जागर शैली को जिस मुक़ाम पे ले गए, वह अपनेआप में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. उत्तराखंड में आज जो जागर शैली या ढ़ोल मंडाण की प्रथा जिन्दा है तो उसमें प्रीतम भरतवाण जी ने एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है और सिर्फ उत्तरखंड ही नहीं वह इस शैली को देश विदेश के कई मंचों तक ले गए और ढोल यंत्र के साथ अपनी एक नई छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं आज उत्तराखंड से विलुप्त होती ढ़ोल वादन यंत्र की यह प्रथा प्रीतम भरतवाण जी की वजह से ही आज अमेरिका की सिनसिनाइटी यूनिवर्सिटी के प्रमुख विषयों में से एक है और वह कई बार इसे पढ़ने के लिए बतौर गेस्ट प्रोफेसर के तौर पर अमेरिका का दौरा भी कर चुके हैं.
आज हम आपको प्रीतम भरतवाण जी के जीवन पहलू से रूबरू करवाएँगे और साथ ही जानेंगे की पहली एल्बम तोंसा बौ से लेकर अब तक सफर कैसा रहा।
प्रीतम भरतवाण जी का जन्म उत्तराखंड के रायपुर ब्लॉक के सिला गाँव में एक औजी परिवार में हुआ, वह उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध जागर गायक और ढ़ोल वादक हैं साथ ही उन्हें पवांडा,धुंयाल,देवीय जागर,ढोल-दमाऊ,थकुली और हुड़का बजाने में भी महारत हासिल है. प्रीतम भरतवाण जी कहते हैं की औजी परिवार के होने से उन्हें जागर गाने की कला और ढ़ोल वादन का लोक संगीत विरासत में मिला है उनके दादा और पापा को भी जागर गायान शैली में काफी महारत हासिल थी और वह पहाड़ के स्थानीय कार्यक्रमों में जागर गाया करते थे. प्रीतम भरतवाण को उनके घर में प्यार से प्रीति बुलाया जाता है.
प्रीतम भरतवाण जी का लगाव बचपन से ही ढोल बजाने और जागर गाने में था वह कहतें हैं की उन्होंने मात्र छ साल की उम्र से ही अपने दादा- पापा के साथ गाना शुरू कर दिया था और वहीं से उनकी ट्रेनिंग होती रही।
वह कहतें हैं की जब वह तीसरी कक्षा में थे तब उन्हें स्कूल में ‘रामी बौराणी’ नाम के एक कार्यक्रम में आवाज़ देने का मौका मिला था और उसके बाद उन्होंने स्कूल में कई गाने के प्रोग्राम किए साथ ही वह रामलीला के मंचों में भी आवाज दिया करते थे. अपने चाचा और जीजा जी के कहने पर उन्होंने अपना पहला जागर लोगों के सामने 12 साल की उम्र में गाया था और उसके बाद वह अपने पापा और चाचा के साथ शादी विवाह व अन्य पर्वों पे जागर गीत लगाते रहे। वह अपने आप को माँ सुरकण्डा देवी के दास होने पर गर्व महसूस करते हैं। उनका जन्मदिन आज उत्तराखंड में ” जागर संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
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पहल गीत :
पहाड़ के जागरों में महरात हासिल करने के बाद सबसे पहले सन 1988 में प्रीतम भरतवाण ने अपनी आवाज को आकाशवाणी के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया और उसके बाद सन 1995 में प्रीतम भरतवाण जी ने अपनी पहली एल्बम तोंसा बौ के नाम से निकाली और दूसरी सरूली के नाम से। जिसे लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया और इस एल्बम के बाद मानो उनकी ज़िन्दगी ही बदल गयी। इसके बाद तो उनके कई गीत और एल्बम आते गए और वह दर्शकों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ते चले गये गए।उनके सबसे पसंदीदा गीतों में
- पेंछी माया
- राजुला
- मेरो हिमवंती देश
- घुट-घुट बडूली लगीं च
- हमू कुशल छांव माँजी
- तिले धारू बोला
- तुम्ही बोला
- मोहना तेरी मुरुली
- दुर्गा भवानी जागर
- धार मा की जोंन
- जोग माया
- सुंदरा छोरी
- हिट मेरी सोंजड़िया
- बिंदुली
- तेरी-मेरी माया की चर्चा
- रुमा -झूमा
- बाँद अमरावती
- बैशाख लागलु
- सेरा हिट गेल्याणी
- दूर प्रदेशु मा छुं
- जुकडी की माया आँसू मा
- तुम्हारी ख़ुद जैसे गीत शामिल हैं।
आज वह लगभग 350 से भी अधिक गीत लिख और गा चुके हैं।
सरूली मेरु जिया लेगी के कुछ बोल
आहा ! सरुली मेरु जिया लगी गे
तेरी रौत्याली मुखडी मा
आहा हक़ बक सी रे ग्योओ
पहुची तेरा कुमो गढ़ मा
हे सुम्याल मेरु जिया लागिगे
तेरी नौसुर्य मुरूली मा
अहा आंखी अटकलि दिन त्वे
कन्दुडी लगी रेंदी बसूली मा
अपने पहले एल्बम की कामयाबी का एक किस्सा साझा करते हुए प्रीतम भरतवाण कहते हैं की वह उनके अगले गाने की रिकॉर्डिंग करवाने के लिए दिल्ली के एक स्टूडियो में पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक सेक्यूरिटी गार्ड ने रोक लिया था,वहाँ पर उन्ही के सामने एक ट्रक में कुछ बॉक्स लोड किये जा रहे थे। जब प्रीतम भरतवाण ने उस गार्ड को पूछा की इन पेटियों में क्या लोड किया जा रहा है..? तो उसका जवाब था की इनके अंदर किसी भरतवाण की कैसेट्स हैं जो की उत्तराखंड जा रही हैं ‘ तो तब उन्हें अहसाह हुआ की उनका एल्बम मार्किट में कितना पसंद किया जा रहा है।
जागरों सम्राट के नाम से मशहूर प्रीतम भरतवाण आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कई देशों जैसे दुबई,ओमान,कनाडा,इंग्लैंड,मस्कट,ऑस्ट्रलिया,न्यूज़लैंड,जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों में भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं और लोगों को अपने जागरों की भोंण पर थिरकने को मजबूर कर देते हैं।
अवार्ड और सम्मान :
प्रीतम भरतवाण को उनकी जागर शैली और उत्तराखंड की संस्कृति में उनके अमूल्य योगदान के लिये कई अवॉर्डों से नवाज़ा गया है जिनमें जागर षिरोमणी,सुर-सम्राट,उत्तराखंड विभूषण,भागीरथी पुत्र,हिमालय रत्न जैसे सम्मान शामिल हैं उत्तराखंड की जागर शैली को दुनियाभर में एक नयी पहचान दिलाने के लिए प्रीतम भरतवाण को गायन के क्षेत्र में साल 2019 में पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।
संस्कृति को उभारने का प्रयास :
आज से लगभग 10 से15 साल पहले उत्तराखंडअपनी संस्कृति और सभ्यताओं से भरा एक सम्पन प्रदेश हुआ करता था लेकिन जैसे-जैसे यह विकास के पथ पर आगे बढ़ने लगा वैसे वैसे हम अपने उत्तराखंड की पौराणिक सभ्यताओं से भी दूर होते चले गए और आज वक़्त यहाँ तक आ गया की वह अपनी विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं और अगर इस वक़्त इन्हें बचाए रखने के कुछ प्रयाश नहीं किये गए तो कुछ सालों बाद वह सिर्फ हमें चित्रों में देखने और पढ़ने को ही मिलेंगी ,
उन्हीं सभ्यताओं में से एक है पहाड़ की मशहूर जागर शैली जागर नृत्य, और पावड़े। लेकिन आज यह सब विप्लुप्ति की कगार पर पहुँच चुके हैं और इन्हें प्रस्तुत करने वाला “औजी” वर्ग भी इन्हें अब हीन भावना से देखने लगा है और वह इस सभ्यता को छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की और निकल पड़े हैं।
लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ सालों में जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने इस जागर शैली का पर्चम पूरी दुनिया में लहराया है उस से अब उम्मीद जागने लगी है की औजी वर्ग इसे जरूर प्रभावित होगा और इसे संवार के रखेगा और प्रीतम भरतवाण इसके मुख्य प्रचारक साबित होंगे।
जागरों का महत्व :
जागरों का प्रचलन उत्तराखंड में कई वर्षों पुराना है जागर शब्द का अर्थ होता है देवताओं को जागृत करने के लिए गाया जाने वाला एक विशिष्ट लहजा। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय देवताओं की काफी मान्यता रहती है और हर वर्ष उनकी विशेष पूजा की जाती है जिनमें भूमिया देवता,नरसिंह देवता,नागेला देवता,दुर्गा भवानी,गोलू देवता,भैरव देवता,माठीयाणा देवी जागरों का काफी महत्व हैऔर हर वर्ष इन्हीं देवताओं को जागृत करने के लिए जागरों का वाचन किया जाता है।
जिसमें जागरी एक मुख्य पात्र होता है जो अपनी विशेष जागरिया शैली से देवताओं का आहवान करता है और उन्हें अवतरित करवाता है।
प्रीतम भरतवाण ने जागरों के साथ-साथ वहां के सामाजिक जीवन,रीती-रिवाजों,खुदेड़ गीतों के साथ साथ कई मार्मिक गीतों से लोगों को जागृत किया है उम्मीद है
उत्तराखंड की जागर शैली को सँवारने और उसे मुकाम तक ले जाने में भी प्रीतम भरतवाण अपना भरपूर सहयोग देंगे और उसे जीवित रखेंगे।
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