आगरा। आगरा के सिकंदरा के गांव लखनपुर में पकड़ी गईं जीजा-साले की दो फैक्टरियों में तैयार होने वाली नकली दवाएं बाजार में 10 गुना अधिक दाम पर खपाई जा रही थीं। विदेशों में माल ऑनलाइन आर्डर मिलने पर मुंबई के डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से जाता था। इन दवाओं पर मूल्य नहीं लिखा जाता था। डिस्ट्रीब्यूटर ही रेट तय करते थे। जिस देश में माल भेजा जा रहा है, वहां पर दवा की जो कीमत होती थी, वही कीमत पैकेट पर अंकित कर दी जाती थी। 2 साल में

लखनपुर में मंगलवार रात को पुलिस ने छापा मारकर बंद मैरिज होम और मकान में पशुओं की नकली दवाएं बनते पकड़ी थीं। 3.50 करोड़ रुपये से अधिक का माल, मशीनरी मिले थे। फैक्टरी संचालक विभव वाटिका, दयालबाग निवासी अश्वनी गुप्ता, पत्नी निधि, साले नरसी विलेस राज दरबार कॉलोनी निवासी साैरभ दुबे और मैनेजर उस्मान पकड़े गए थे। औषधि विभाग की टीम बृहस्पतिवार तक दवाओं की गिनती करती रही।

पुलिस की पूछताछ में साैरभ और अश्वनी गुप्ता ने बताया कि उनके पास कोई विशेषज्ञ नहीं है। फैक्टरी का लाइसेंस भी नहीं था। उन्हें पहले से दवाओं को तैयार करने की जानकारी थी। इस पर जीजा-साले ने फैक्टरी खोल ली। विवाद होने पर दोनों अलग हो गए। लेकिन दवाएं पशुओं की ही बनाते थे। पशुओं के पेट में कीड़े होने पर आइवर मैक्टिन इंजेक्शन लगाया जाता है। इस नाम से सीरप भी मिलता है। वह बाजार में मिलने वाली आइवर मैक्टिन की तरह ही अपनी फैक्टरी में सीरप और इंजेक्शन तैयार करते हैं। इसको तैयार करने में 90 से 100 रुपये की लागत आती है, जबकि बाजार में मिलने वाली असली दवा का मूल्य 1100 रुपये तक है। वह भी अपनी फैक्टरी में बने इंजेक्शन और सीरप का मूल्य 1100 रुपये ही रखते थे। डीसीपी सिटी सूरज राय ने बताया कि दवाओं की गिनती की जा रही है। औषधि विभाग की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। शुक्रवार को आरोपियों को कोर्ट में पेश करेंगे।

फैक्टरी में कई सामान्य बीमारियों के टेबलेट और सीरप 50 से 150 रुपये में तैयार कर दिए जाते हैं। इनका बाजार में मूल्य 250 से 300 रुपये तक होता है। फैक्टरी में अलग-अलग एजेंट आर्डर भेजते थे। वह उन्हें माल दे देते थे। खरीदारों को बताया जाता था कि उनके पास लाइसेंस है। उत्तराखंड से ले रखा है। पशुओं में पेट के कीड़े मारने वाली कुंच आक्जल प्लस, दर्द व बुखार में दी जाने वाली लंदन डेकस्टार और पेट की समस्या के लिए ब्लोटासैक गोल्ड नाम की 3 नकली दवाएं भी फैक्टरियों से बरामद की गई हैं। कुंच आक्जल प्लस पर 25 रुपये, लंदन डेकस्टार पर 24 रुपये और ब्लोटासैक गोल्ड 100 मिलीलीटर पर 28 रुपये व 500 मिलीलीटर पर 75 रुपये खर्च आता था। यह अफगानिस्तान और अफ्रीकी देश अंगोला भेजी जाती थीं।

अश्वनी गुप्ता ने पुलिस को बताया कि एमबीए पास साला पशुओं की दवा फैक्टरी में काम करता था। इससे उसने दवा बनाने की जानकारी ले ली। बाद में उसने उन्हें भी फैक्टरी खोलने के बारे में बताया। वह तैयार हो गए। फरवरी 2023 में एक फैक्टरी बंद मैरिज होम में खोली। काम अच्छा चलने लगा। साैरभ हर महीने अपना हिस्सा ले लेता था। अगस्त 2023 में उसने उनसे अलग होकर अपनी फैक्टरी खोल ली। इसका नोवीटास लाइफ साइंसेज नाम से पंजीकरण भी करा लिया। साले ने जीजा अश्वनी को इस बारे में नहीं बताया। वह अलग हुआ, तब उन्हें पता चला।

सिकंदरा क्षेत्र में पहले भी नकली दवा की फैक्टरी पकड़ी गई थी। तब एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के कुछ कर्मियों के संलिप्त होने की बात सामने आई थी। इस बार औषधि विभाग की लापरवाही सामने आई है। अश्वनी गुप्ता ने डेढ़ साल पहले औषधि विभाग को गोदाम का लाइसेंस लेने के लिए जगह का निरीक्षण कराया था। टीम निरीक्षण करके चली गई। अश्वनी ने बिना लाइसेंस लिए ही वहां पर फैक्टरी खोल ली। इस पर विभाग ने ध्यान नहीं दिया। तब ही निरीक्षण कर लिया जाता तो पशुओं की नकली दवाओं की बिक्री रुक जाती।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here