देहरादून। आजाद कॉलोनी मदरसा मामले में उर्दू के दस्तावेज दाखिल होने से राज्य बाल आयोग की सुनवाई अटक गई है। बाल आयोग के सामने मदरसा प्रबंधक की ओर से दाखिल ज्यादातर दस्तावेज उर्दू मेंं हैं। इस कारण बाल आयोग ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग से अनुवादक या उर्दू का जानकार उपलब्ध कराने के लिए कहा था लेकिन अल्पसंख्यक आयोग ने हाथ खड़े कर दिए।

अल्पसंख्यक आयोग ने पत्र भेजकर बाल आयोग को बताया है कि उनके पास कोई भी कर्मी उर्दू का अनुवादक या जानकार नहीं है। इस वजह से आयोग के सामने दाखिल दस्तावेजों का पठन या जांच नहीं हो सकी है। इस मामले में शिक्षा महानिदेशक से भी जांच रिपोर्ट आने का इंतजार है। आजाद कॉलोनी मदरसा में बाल आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना और उनकी टीम ने औचक निरीक्षण किया था, जिसके बाद वहां बच्चों को बुरे हालात में रखे जाने, खराब स्वास्थ्य, बिना पंजीकरण मदरसा चलाने और स्कूली शिक्षा दिए जाने को लेकर सवाल उठाए गए थे, जिस पर जांच और सुनवाई जारी है।

मदरसा शिक्षा प्रणाली के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट पर उत्तराखंड बाल आयोग ने सहमति जताई है। राज्य बाल आयोग ने इस संबंध में शिक्षा महानिदेशक से रिपोर्ट तलब की है। आयोग का कहना है कि फिलहाल स्पष्ट जवाब नहीं मिला है।दरअसल, एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि मदरसा शिक्षा प्रणाली शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन कर रही है। मदरसों में बच्चों को धार्मिक शिक्षा का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उन्हें मुख्यधारा की शैक्षणिक शिक्षा में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाता। एनसीपीसीआर ने मदरसे में पढ़ाई जाने वाली कुछ पुस्तकों की सामग्री पर चिंता जताई है, जो विशेष तौर पर धर्म विशेष को सर्वोच्च बताती है।

इस पर उत्तराखंड बाल आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने कहा कि वह पहले से कहती आ रही हैं कि मदरसों में बच्चों के समान शिक्षा के अधिकार का हनन हो रहा है। उत्तराखंड के कई मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते हैं। यही वजह है कि राज्य बाल आयोग लगातार मदरसों के पंजीकरण, धार्मिक शिक्षा दिए जाने का आधार और उनकी स्कूली मान्यता को लेकर सवाल कर रहा है। राज्य में यह गंभीर समस्या है, जिस पर आयोग की ओर से लगातार जांच और सुनवाई जारी है।

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