राज शेखर भट्ट, सम्पादक, देवभूमि समाचार

उत्तराखंड, जिसे प्राचीन काल से ही ‘देवभूमि’ के रूप में पूजा जाता रहा है, आज अपने धार्मिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक वैभव के साथ-साथ एक और छवि के लिए चर्चित हो चला है — बार-बार होने वाले जानलेवा हादसे। हर साल यह राज्य प्राकृतिक आपदाओं, सड़क दुर्घटनाओं, पर्वतीय भूस्खलनों और पर्यटक दुर्घटनाओं के कारण राष्ट्रीय सुर्खियों में बना रहता है।

राज्य की भौगोलिक संरचना: सुंदरता और संकट साथ-साथ

उत्तराखंड की लगभग 86% भूमि पहाड़ी है। पर्वतीय भूभाग पर बसे सैकड़ों गांव, शहर और तीर्थस्थल ऐसे स्थानों पर स्थित हैं जहाँ पहुँचने के लिए संकीर्ण, घुमावदार और अत्यंत खतरनाक सड़कों का सहारा लेना पड़ता है। वर्षा ऋतु में भूस्खलन और सर्दियों में बर्फबारी के कारण ये रास्ते कई बार मौत के फंदे में बदल जाते हैं।

सड़क हादसे: हर मोड़ पर खतरा

सड़क दुर्घटनाएं उत्तराखंड में सबसे आम और घातक घटनाओं में से एक हैं। पिछले कुछ वर्षों में ये घटनाएं और भी अधिक खतरनाक रूप ले चुकी हैं:

  • 2023 में लगभग 1500 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 1200 से ज़्यादा मौतें हुईं।
  • पर्वतीय जिलों जैसे टिहरी, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं।
  • हादसे मुख्यतः यात्रियों से भरे वाहन जैसे बोलैरो, यूटिलिटी, मैक्स आदि के अनियंत्रित होकर खाई में गिरने से होते हैं।

हादसों के प्रमुख कारण

  1. खस्ताहाल सड़कों का जाल: कई सड़कें वर्षों से मरम्मत की बाट जोह रही हैं। मिट्टी के कटाव, पत्थरों के गिरने और बारिश से धसकती सड़कें आम दृश्य हैं।
  2. वाहन ओवरलोडिंग और अनियंत्रित चाल: पर्वतीय ड्राइविंग के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, लेकिन अक्सर वाहन चालक कम अनुभव वाले या लापरवाह होते हैं।
  3. रात्रि यात्रा की जोखिमें: रोशनी की कमी, तीव्र मोड़ और ऊबड़-खाबड़ रास्ते रात में विशेष रूप से खतरनाक हो जाते हैं।
  4. आपातकालीन सुविधाओं की कमी: अस्पताल और प्राथमिक उपचार केंद्र कई बार इतनी दूर होते हैं कि घायल व्यक्ति की जान पहुँचने से पहले ही चली जाती है।
  5. प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन, अचानक बर्फबारी, बारिश और हिमस्खलन जैसे आपदाएं गाड़ियों को अपने साथ बहा ले जाती हैं।

हालिया दुर्घटनाओं की झलकियां

  • अप्रैल 2025, घनसाली, टिहरी: भागवत कथा से लौट रही एक यूटिलिटी वाहन खाई में गिरी, दो लोगों की मौत, छह घायल।
  • सितंबर 2023, पिथौरागढ़: एक पर्यटक वाहन खाई में गिरा, सात लोगों की मौके पर ही मृत्यु।
  • जून 2022, केदारनाथ यात्रा मार्ग: तीर्थयात्रियों से भरी बस अनियंत्रित होकर नीचे गिरी, 26 लोग मारे गए।

प्रशासनिक प्रयास और उनकी सीमाएं

राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर प्रयास जरूर किए जाते हैं — जैसे ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट, ड्राइवर प्रशिक्षण शिविर, और यातायात पुलिस की तैनाती — लेकिन वे जमीनी स्तर पर पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं हो पाए हैं।

प्रशासनिक चुनौतियाँ:

  • सीमित बजट और संसाधन
  • वन और पर्यावरणीय मंजूरी की देरी
  • जनसंख्या दबाव और अनियोजित पर्यटन
  • स्थानीय जागरूकता की कमी

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  • दुर्घटनाओं में परिवार के कमाऊ सदस्य की मृत्यु से परिवार गरीबी में धकेला जाता है।
  • पर्यटन पर नकारात्मक असर होता है, जिससे स्थानीय रोजगार प्रभावित होते हैं।
  • बच्चों और बुजुर्गों पर मानसिक आघात का गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • सरकारी मुआवजे की प्रक्रिया कई बार बहुत धीमी और जटिल होती है।

क्या हो सकते हैं समाधान?

भौतिक समाधान:

  • सभी पहाड़ी मार्गों पर गुणवत्ता आधारित सड़क चौड़ीकरण
  • हाई रिस्क क्षेत्रों में गार्ड रेलिंग और संकेत बोर्ड की स्थापना।
  • नवीन तकनीकों जैसे ड्रोन निगरानी, स्लाइडिंग रॉक डिटेक्शन सिस्टम और जीपीएस-आधारित ट्रैकिंग का उपयोग।

मानवीय समाधान:

  • पर्वतीय ड्राइवरों के लिए विशेष प्रशिक्षण और लाइसेंस प्रणाली
  • स्थानीय रेस्क्यू वॉलंटियर्स की टीम, जिन्हें आपात स्थिति में सक्रिय किया जा सके।
  • स्कूलों और ग्राम सभाओं में सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम

नीतिगत समाधान:

  • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को ‘डिजास्टर ज़ोन’ घोषित कर विशेष निगरानी।
  • हादसों के बाद त्वरित मुआवजा भुगतान और बीमा दावों का सरलीकरण
  • ट्रैफिक पुलिस और ड्रोन-निगरानी टीमों की संख्या में इज़ाफा।

निष्कर्ष: कब जागेगी संवेदनशीलता?

उत्तराखंड को सिर्फ ‘देवभूमि’ कहने से उसकी सुरक्षा नहीं हो सकती। यह राज्य जितना धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, उतना ही यह भूगोलिक रूप से संवेदनशील भी है। जब तक प्रशासन, नागरिक और सरकार मिलकर हर दुर्घटना को एक चेतावनी की तरह नहीं लेंगे, तब तक हादसों का सिलसिला नहीं थमेगा। हर जान जो इन सड़कों पर खोती है, सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, एक परिवार की पूरी दुनिया होती है।

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