बदायूं। उत्तर प्रदेश के बदायूं जनपद के सहसवान कोतवाली क्षेत्र से एक चौंकाने वाली और दर्दनाक घटना सामने आई है। बुधवार सुबह करीब आठ बजे हरदत्तपुर मार्ग पर स्थित दो निजी अस्पतालों के संचालकों के बीच लंबे समय से चल रही रंजिश में एक निर्दोष दूध विक्रेता की जान चली गई। मृतक की पहचान वीरेश पुत्र उदयवीर के रूप में हुई है, जो सुबह के वक्त मोहल्ले में रोजाना की तरह दूध बांटने निकले थे। गोली लगते ही वीरेश मौके पर ही गिर पड़े और उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
घटना का विवरण
घटना बुधवार सुबह की है जब वीरेश अपने नियमित काम के तहत मोहल्ले में दूध वितरण कर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अचानक दो पक्षों में विवाद हुआ जो अस्पताल से संबंधित था। इसी विवाद में जब वीरेश ने हस्तक्षेप कर मामला शांत कराने की कोशिश की, तभी एक पक्ष के व्यक्ति ने गोली चला दी, जो सीधे वीरेश को जा लगी।
स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, लेकिन जब तक पुलिस पहुंची, वीरेश की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। पूरे क्षेत्र में इस निर्मम हत्या से दहशत फैल गई है।
पुलिस की कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही सहसवान कोतवाली पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। घटनास्थल की गहनता से जांच की गई और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जा रही है।
सहसवान थाना प्रभारी ने बताया:
“अस्पताल संचालकों के बीच पुरानी रंजिश की पुष्टि हुई है। मृतक का विवाद से सीधा संबंध नहीं था, वह संभवतः बीच-बचाव में गोली का शिकार हुआ। हमलावरों की पहचान की जा रही है और जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाएगी।”
स्थानीय लोगों में आक्रोश
घटना के बाद मोहल्ले में तनाव का माहौल है। स्थानीय लोगों ने प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है। वीरेश के परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा तो केवल सुबह-सुबह दूध बांटने निकला था, उसे क्या मालूम था कि मौत उसका इंतज़ार कर रही है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और सुरक्षा सवाल
घटना ने बदायूं प्रशासन की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय नेताओं ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराज़गी जताते हुए कहा है कि यदि अस्पताल संचालकों की रंजिश की जानकारी पहले से थी तो पहले ही एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए गए?
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण: निर्दोषों की जान क्यों जाती है?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि निजी झगड़ों, संस्थागत प्रतिस्पर्धा और पेशेवर ईर्ष्या में निर्दोष नागरिकों को क्यों बलि का बकरा बनना पड़ता है? वीरेश की मौत केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि समाज की संवेदना और सुरक्षा भावना की भी हत्या है।
निष्कर्ष
बदायूं की यह घटना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि एक ऐसे सामाजिक तंत्र की विफलता है, जो व्यक्तिगत रंजिशों को सार्वजनिक हिंसा में बदलने से रोक नहीं पाता। अब सवाल यह है कि क्या वीरेश को न्याय मिलेगा? क्या हमलावर पकड़े जाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल – कब तक निर्दोष नागरिक ऐसे झगड़ों की भेंट चढ़ते रहेंगे?