आज उत्तराखंड के मशहूर गायक स्वर्गीय पप्पू कार्की (pappu karki) की दूसरी पुण्यतिथि है पप्पू कार्की वह नाम है जिसने बहुत ही कम समय में उत्तराखंड के लोकगायकी जगत में अपनी पहचान बनाई थी। लेकिन खुदा को कुछ और मंजूर था और वह छोटी सी उम्र में ही हमें छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। आपको बता दें कि आज ही के दिन 2018 में पप्पू कार्की नैनीताल के गलियारों से अपने एक कार्यक्रम के बाद अपने साथियों के साथ वापस हल्द्वानी की ओर लौट रहे थे तभी अचानक लगभग सुबह 5:00 बजे हेड़ाखान मंदिर के समीप उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और खाई में जा गिरी जिसमें उनकी और उनके साथियों की मौत हो गई थी.
पप्पू कार्की का बचपन से ही संगीत में काफी लगाव था और वह मात्र पाँच वर्ष की उम्र से ही गीत गाने शुरू कर दिए थे। वह रामलीला के मंचों पर स्कूलों में या गांव के छोटे-मोटे कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर अपनी गायकी के अंदाज को बयां करते थे। पप्पू कार्की का जन्म 30 जून 1984 को पिथौरागढ़ के एक छोटे से गांव सिलवान में हुआ था उनकी माता का नाम कमला और उनके पिता का नाम किशन सिंह कार्की था। पप्पू कार्की की शादी कविता कार्की के साथ हुई थी और उनका एक बेटा है जिसका नाम दक्ष कार्की है। उन्होंने अपने बचपन की शिक्षा गांव के ही एक प्राथमिक विद्यालय हीपा से प्राप्त की और आगे चलकर उन्होंने अपने हाईस्कूल की पढ़ाई भटी गांव से पूरी की।
पप्पू कार्की का शुरुआती जीवन भी काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। गायकी के अपने शौक के साथ-साथ उन्होंने कई जगहों पर नौकरी भी की उन्होंने 2003 से लेकर 2006 तक दिल्ली में एक पेट्रोल पंप पर काम किया,उसके बाद उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस में और बैंक में भी एक चपरासी की नौकरी की लेकिन जब दिल्ली में उन्हें नौकरी ठीक-ठाक नहीं लगी तो तब वह कुछ समय पहले रुद्रपुर आ गए जहां उन्होंने दो साल तक डाबर कंपनी में भी काम किया और साथ ही साथ अपनी गायकी के शौक को भी पूरा करते रहे। पप्पू कार्की बचपन से ही को पप्पू कार्की को बचपन से ही संगीत से काफी लगाव था और वहां 5 साल की उम्र से ही गाने गाने लग गए थे।
पप्पू कार्की का पहला गीत कृष्ण कार्की की जुगलबंदी पर आधारित था जिसे फौज की नौकरी एल्बम में सम्मिलित किया गया था इसके उसके बाद 2002 में हरियो रुमाला नाम की एक एल्बम में भी पप्पू कार्की के कुछ गीत शामिल थे।
2003 में पप्पू कार्की ने अपनी पहली एलबम मेघा के नाम से निकाली और इसमें उन्होंने अपने गीतों की एक सुंदर सी श्रृंखला को पेश कि लेकिन वह दर्शकों को कुछ खास रास नहीं आयी। इसके बाद वह दिल्ली चले गए जहां पर उन्होंने उत्तराखंड आइडल में भाग लिया और वहां पर वह प्रथम रनर अप रहे इसके बाद धीरे-धीरे पप्पू कार्की की कैरियर को पहचान मिलती रही और उन्होंने लोक गायक प्रल्हाद और चाँदनी इंटरप्राइज के साथ मिलकर ‘झम्म लागछी’ एल्बम के लिए गाने निकाले। 2010 में आई यह कैसेट सुपरहिट साबित हुई. इस कैसेट के गानों ने पप्पू कार्की को उत्तराखंड के लोक संगीत जगत में एक नई पहचान दिला दी।
Pappu Karki
भले ही पप्पू कार्की आज हमारे बीच में मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज संगीत प्रेमियों के कानों में हमेशा-हमेशा गूँजती रहेगी।
अपने छोटे से करियर में पप्पू कार्की ने कई सारे सुपरहिट गीत उत्तराखंड के संगीत जगत को दिए. कई सालों पहले पप्पू कार्की के द्वारा गाया गया फ्वं बाघा रे गीत आज उत्तराखंड का सबसे प्रसिद्ध और सबसे ज्यादा बार देखा और सुना जाने वाला गीत है जो कि पिछले साल रिलीज हुआ था और यह काफी वायरल भी हुआ था।
पप्पू कार्की ने लगभग-लगभग जितने भी गीत गाए उनके गीतों की एक अलग शैली व अलग पहचान थी जो दर्शक के दिलों पर अपनी छाप जरूर छोड़ जाती थी इन गीतों में डीडीहाट कि छमुनाछोरी,सिलगड़ी का पाला चाला, पहाड़ो ठंडो पाणी, मधुली,छम छम बाजे ली हो,उत्तरायणी कौतिक लागि रो, हीरा समधणी, चैत वैशाखा मेरो मुंस्यारा, सुन ले दगड़िया, काजल को टिक लगा दे, लाली हो लाली होशिया,स्याळी मार्छाली,चकोटे की पार्वती,नीलू छोरी, तेरी माया सुवा रोली अमर, मेरी जेठी सासु विमला, हिट सारू पहाड़ मेरा घुमि आली, फ्वं बाघा रे के साथ-साथ न्यूली,पिछोड़ी और चांछडी जैसे कई सारे गीत शामिल है।
आज भले ही इन गीतों को गाने वाले पप्पू कार्की जी हमारे बीच में ना हो लेकिन उनकी आवाज सदा-सदा के लिए हमारे बीच रहेगी और दर्शकों के दिलों में अमर रहेगी उनकी इस दूसरी पुण्यतिथि पर न्यूज़ उत्तराखंड की टीम की ओर से उन्हें शत-शत नमन व भावपूर्ण श्रद्धांजलि।